"संगठित चुनाव, समृद्ध राष्ट्र: एक ही बार में सबकुछ!"
भारत एक विशाल और विविधतापूर्ण देश है, जहाँ विभिन्न राज्य और केंद्र शासित क्षेत्र हैं। इनकी चुनावी प्रक्रिया भी जटिल है, जिससे समय, संसाधन और ऊर्जा का अपव्यय होता है। ऐसे में "एक राष्ट्र, एक चुनाव" का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जो हमारे लोकतंत्र को और सशक्त बनाएगा।
यदि हम एक साथ सभी चुनावों का आयोजन करें, तो इससे चुनावी प्रक्रिया में लगने वाला समय और संसाधन दोनों ही बचेंगे। विभिन्न चुनावों के बीच प्रचार और प्रचार सामग्री तैयार करने में बड़ी मात्रा में धन खर्च होता है। जब चुनाव एक साथ होंगे, तो राजनीतिक दलों को अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग करने का अवसर मिलेगा।
भारत की आजादी के चार साल बाद यानि 1951-52 में पहली बार देश में लोकसभा चुनाव हुए. इस दौरान लोकसभा के साथ ही सभी अन्य राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी हुए थे, ये प्रक्रिया लगातार चार लोकसभा चुनावों तक जारी रही. 1957, 1962 और 1967 में भी एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराए गए थे. लेकिन इसके बाद यह क्रम टूट गया। उसके बाद से देश में अलग-अलग चुनाव होने लगे, जिससे चुनावी प्रक्रिया और जटिल हो गई। इस परिवर्तन ने न केवल संसाधनों का अपव्यय किया, बल्कि राजनीतिक स्थिरता को भी प्रभावित किया। अब "वन नेशन, वन इलेक्शन" की अवधारणा को फिर से लागू करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि चुनावों को सरल और प्रभावी बनाया जा सके।
"एक राष्ट्र, एक चुनाव" का सिद्धांत केवल एक चुनावी सुधार नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाता है, बल्कि देश की स्थिरता और विकास को भी बढ़ावा देता है।
समाज के सभी वर्गों को इस विचार को समर्थन देना चाहिए, ताकि हम एक सशक्त और समृद्ध भारत की दिशा में बढ़ सकें। "एक राष्ट्र, एक चुनाव" के माध्यम से हम अपनी राजनीतिक प्रणाली को सुधारने और भविष्य के लिए एक नई दिशा देने का प्रयास कर सकते हैं।
~ऋतिक पटेल, झाँसी