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फोटो मे बुजुर्ग और लेखक दोनों साथ में |
गाँव का हर कोना एक कहानी कहता है, और हर बुजुर्ग उस कहानी का एक जीवंत पात्र होता है। जब मैं उस छोटे से गाँव गढ़कुंडार पहुँचा, जो मध्य प्रदेश मे स्थित है, तो मुझे इतिहास की धड़कन महसूस हुई।
थकान से चूर मैं एक शांत जगह ढूँढ रहा था, तभी मेरी नज़र मंदिर के पास बैठे एक वृद्ध व्यक्ति पर पड़ी। उनकी आँखों में न जाने कितने दशकों का अनुभव झलक रहा था। मैं धीरे-धीरे उनके पास गया और उनके बगल में बैठ गया। वहाँ की ठंडी हवा, घनी छाया और मंदिर का सुकून—शायद यही कारण था कि वह बुजुर्ग वहीं बैठे थे। लेकिन जैसे-जैसे मैंने उन्हें ध्यान से देखा, तो समझ आया कि वह केवल सुकून के लिए नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह पर बैठे थे, जहाँ से पूरे गाँव का हर आने-जाने वाला व्यक्ति दिख सके।
मंदिर के दरवाजे बंद थे, इसलिए यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल था कि वे वहाँ प्रसाद लेने बैठे थे या किसी और कारण से। कुछ देर बाद मैंने उनसे सवाल किए, और उन्होंने संक्षिप्त लेकिन गहरी बातें कहीं।
फिर, उन्होंने मुझसे पहला सवाल पूछा—"तुम कहाँ से आए हो?"
मैंने उन्हें अपनी यात्रा के बारे में बताया, और इसके बाद उन्होंने कोई और प्रश्न नहीं किया। शायद इसलिए क्योंकि उस जगह से उनका कोई विशेष नाता नहीं था, या शायद उनके लिए मेरा यहाँ आना ही पर्याप्त था।
यह मुलाक़ात छोटी थी, पर इसमें गाँव के इतिहास, अनुभव और जीवन के अनकहे पाठ छुपे थे।
कुछ मुलाक़ातें शब्दों से नहीं, एहसासों से इतिहास लिख जाती हैं।
~ ऋतिक पटेल